
दो नेताओं का उदय
तृणमूल कांग्रेस (TMC) की नेता ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी (AAP) के प्रमुख अरविंद केजरीवाल पिछले एक दशक में भारतीय राजनीति के सबसे प्रभावशाली क्षेत्रीय नेता रहे हैं। दोनों ने पारंपरिक पार्टियों—कांग्रेस और बीजेपी—को चुनौती देकर अपनी अलग पहचान बनाई। ममता बनर्जी ने 2011 में पश्चिम बंगाल में 34 साल पुरानी वामपंथी सरकार को हराया, जबकि केजरीवाल ने 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में जबरदस्त जीत हासिल की।
हालाँकि, उनकी राजनीतिक यात्रा अलग रही है, लेकिन उनके उदय में कुछ समानताएँ हैं:
- जनहितकारी शासन – ममता बनर्जी ने ग्रामीण विकास, महिला सशक्तिकरण और प्रत्यक्ष लाभ योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि केजरीवाल ने दिल्ली में मुफ्त बिजली, पानी और शिक्षा को प्राथमिकता दी।
- बीजेपी विरोधी रुख – दोनों नेता बीजेपी के मुखर आलोचक रहे हैं और केंद्र सरकार पर विपक्ष को दबाने के आरोप लगाते रहे हैं।
- धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद – ममता अल्पसंख्यकों को साधने में माहिर रही हैं, जबकि केजरीवाल ने हाल के वर्षों में एक राष्ट्रवादी रुख अपनाते हुए राम मंदिर जैसे मुद्दों पर समर्थन जताया है।
- प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा – ममता ने विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश की, जबकि केजरीवाल ने दिल्ली और पंजाब से आगे AAP का विस्तार करने का प्रयास किया।
दिल्ली में केजरीवाल की गिरावट: ममता के लिए चेतावनी? (The Fall of Kejriwal in Delhi: A Warning for Mamata?)
दिल्ली में AAP की हालिया हार भारतीय राजनीति में एक अहम मोड़ है। कभी बीजेपी और कांग्रेस के विकल्प के रूप में देखी जाने वाली यह पार्टी अब कई चुनौतियों का सामना कर रही है।
अगर ममता बनर्जी समय रहते अपने वोट बैंक को मजबूत नहीं करतीं और बीजेपी की रणनीति का सामना नहीं कर पातीं, तो उन्हें भी केजरीवाल की तरह मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। 2026 के चुनाव ममता की राजनीतिक शक्ति की परीक्षा होंगे। क्या वह मजबूती से उभरेंगी, या केजरीवाल की तरह कमजोर पड़ेंगी? यह भविष्य की राजनीति पर निर्भर करेगा।
ममता बनर्जी और TMC के लिए संभावित खतरे
1. बीजेपी का भ्रष्टाचार विरोधी अभियान
बीजेपी विपक्षी नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को जोर-शोर से उठाती रही है। दिल्ली शराब नीति घोटाले में AAP नेताओं की गिरफ्तारी के बाद पार्टी की छवि को भारी नुकसान हुआ। इसी तरह, ममता बनर्जी और TMC पर भी कई घोटालों के आरोप लगे हैं:
- SSC भर्ती घोटाला (2022) – पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी को गिरफ्तार किया गया, और उनके सहयोगियों के पास से ₹50 करोड़ नकद बरामद हुए।
- मवेशी और कोयला तस्करी घोटाला – बंगाल-बांग्लादेश सीमा पर तस्करी में TMC नेताओं की संलिप्तता की जांच चल रही है।
- रेत खनन घोटाला (2021) – अवैध खनन के कारण राज्य को भारी आर्थिक नुकसान हुआ।
- अम्फान राहत घोटाला (2020) – चक्रवात पीड़ितों के लिए जारी किए गए राहत कोष में भ्रष्टाचार के आरोप लगे।
- नगरपालिका भर्ती घोटाला (2023) – नौकरियों के लिए रिश्वत लेने के मामले सामने आए।
- चावल घोटाला (2019) – खाद्य वितरण प्रणाली में घोटाले का खुलासा हुआ।
2. ED और CBI की बढ़ती जाँच
जैसे AAP के नेताओं पर केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई हुई, वैसे ही TMC के शीर्ष नेताओं पर भी जाँच बढ़ सकती है। अभिषेक बनर्जी समेत कई नेताओं से पूछताछ हो चुकी है।
3. बीजेपी का हिंदुत्व अभियान
बीजेपी का हिंदुत्व अभियान ममता की हिंदू वोटबैंक पर पकड़ को कमजोर कर सकता है। 2026 के चुनाव में निम्नलिखित मुद्दे महत्वपूर्ण होंगे:
- दुर्गा पूजा बनाम मुहर्रम विवाद
- सीमावर्ती जिलों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण
- ‘जय श्री राम’ नारे पर ममता की प्रतिक्रिया
- अयोध्या राम मंदिर मुद्दे का प्रभाव
- ममता की मुस्लिम वोट बैंक पर निर्भरता
4. बीजेपी का बंगाल में विस्तार
AAP की हार से बीजेपी को शहरी इलाकों में मजबूती मिल सकती है। अगर बीजेपी ने केजरीवाल को कमजोर किया, तो वही रणनीति बंगाल में ममता के खिलाफ अपनाई जा सकती है।
5. मतदाता धारणा और क्षेत्रीय प्रभाव
अगर मतदाताओं को यह लगने लगा कि बीजेपी क्षेत्रीय नेताओं को कमजोर कर सकती है, तो यह TMC के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हालाँकि, ममता का जनाधार केजरीवाल से अधिक मजबूत है।
निष्कर्ष
ममता बनर्जी के सामने आगे का रास्ता चुनौतियों और अवसरों से भरा है। बंगाल में उनकी पकड़ मजबूत है, लेकिन बीजेपी की बढ़ती शक्ति, पार्टी के आंतरिक संकट और भ्रष्टाचार के आरोप उनकी राजनीतिक स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं। 2026 के चुनाव उनकी राजनीतिक क्षमता की अग्निपरीक्षा होंगे—क्या वह अपनी सत्ता बचा पाएंगी, या अन्य क्षेत्रीय नेताओं की तरह हाशिए पर चली जाएँगी? भारतीय राजनीति में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।